
भारत सरकार के जनगणना निदेशालय के आदेश के अनुसार १ मई से जनगणना का कार्य प्रारंभ हो गया है। प्रथम पखवाड़े के पहले दिन जिले के तमाम बड़े नेताओं एवं रासुकदार लोगो से जनगणना का कार्य प्रारंभ किया गया। जिस दिन से जनगणना शुरू हुई उसी दिन से आम लोगो पर आफत आ गयी। इस जनगणना कार्य में सरकारी मुलाजिमो को लगाया गया है। जिससे सरकारी दफ्तरों में सन्नाटा पसरा हुआ है। सारे काम काज टप्प पद गए है, मामलों के निराकरण नहीं होने से टेबलों पर फायलोकी ऊँची कतार लग गयी है।
जिस विभाग के कर्मचारी जनगणना कार्य में लगे हुए है, उस विभाग के कार्यो को देखने के लिए सरकार ने कोई वकाल्पिक व्यवस्ता भी नहीं की है। आम आदमी यदि अपनी कोई समस्या लेके जाता है तो ऑफिस के चपरासी कहते है की साहब जनगणना में गए हुए है बाद में आना। जो कर्मचारी जनगणना कार्य में लगे हुए है वे भी इस कार्य से नाखुश बताये जा रहे है, कारण भीषण गर्मी।
इस भीषण गर्मी में लोगो के घरो तक जा कर जनगणना करने में कर्मचारियों को पसीने छूट रहे है। एक तो ये गर्मी ऊपर से ये काम न किया जा रहा है न मना किया जा सकता है , आखिर सरकारी फरमान जो ठहरा। वैसे भी गर्मी की छुट्टिया लगते ही लोग गर्मी से रहत पाने के लिए छुट्टिया मानाने चले जाते है, जिससे जनगणना में लगे कर्मचारियों को भी सही जानकारी नहीं मिल प् रही है। जिसका असर सीदे जनगणना कार्य पर पढ़ रहा है। लेकिन सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं। जो भी हो जैसा भी हो आखिर काम तो पूरा हो ही जायेगा चाहे
वे फर्जी आंकड़े ही क्यों न हो।
जनगणना कर्मचारी धुप और गर्मी से रहत के लिए किसी ठंढी जगह की तलाश करते देखे जा सकते है, एक जगह बैठकर जनगणना के आंकड़े भी बनाते हुए भी मिल जायेंगे। इसमें इन कर्मचारियों की भी गलती नहीं है जनगणना कार्य लिए चयन किया गया समय ही गलत है। कर्मचारी तो विवशता वश ये कार्य कर रहे है। इससे अच्छा तो यह होता की सरकार इस कार्य के लिए निजी संस्थाओं एवं स्वयं सेवी संस्थाओं का चयन करता तो सरकारी दफ्तरों का काम भी नहीं रुकता, लोगो की परेसानी भी कम हो जाती और जनगणना का कार्य भी ठीक तरह से होता।
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