
प्रदेश सरकार गरीबो को रहत देने के लिए सस्ते चावल और राशन की योजना शुरू की थी , जिससे गरीबो को सस्ता चावल एवं अनाज मिल सके । इसके लिए सात समूहों में राशन कार्ड का वितरण भी किया गया था।
योजना के शुरू होने के पहले गरीबो की संख्या का अनुमान नहीं था , वहीँ योजना के शुरू होने के बाद सारा शहर गरीब हो गया। वर्तमान स्थिति यह है की जो लोग संपन्न है वे भी कार्ड बनवा कर सरकारी योजनाओं का फायदा उठा रहे है और सरकारी राशन की कालाबाजारी जोरों से कर रहे है।
सरकार की इस जनउपयोगी योजना को भी कुछ स्वार्थी लोगो ने व्यापार बना दिया है। ये लोग राशन की कालाबाजारी को अपना धंधा बना बैठे है। राशन की कालाबाजारी करने वालो में वो लोग है जिन्होंने फर्जी तरीके से अपना कार्ड बनवाया है। जिनके लिए सरकारी राशन में मिले चावल की कोई कीमत नहीं। २/- रु किलो की दर से मिलाने वाले चावल को ये स्वार्थी लोग बाज़ार में १४/- रु किलो की दर से बेच देते है। इस धंधे में मुनाफा तो है ही और जोखिम भी नहीं है। चावल की कालाबाजारी से वास्तविक गरीब ज्यादा प्रभावित हो रहा है। सरकार अपनी योजनाओं में नित नए परिवर्तन करती रहती है कभी उसना चावल तो कभी गेहूं देकर अरवा चावल की मात्रा कम कर रही है। जिससे लोगो में आक्रोश व्याप्त है।
यही नहीं राशन दुकान संचालक भी उपभोगताओं से अच्छा व्यव्हार नहीं करते है। शिकायत करने पर राशन कार्ड रद्द करा देने की धमकी देते है। राशन दुकानों के तौल में भी भारी गड़बड़ी पाई जा रही है। १ किलो के तौल में १०० से १५० ग्राम तक की चोरी की जाती है जिसका पता ग्राहक को नहीं चलता। जो इन संचालको की जेब में जाता है। खाद्य विभाग को ऐसे संचालको के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। खाद्य विभाग द्वारा पिछले दिनों फर्जी राशन कार्डों की छंटनी का आदेश जारी हुआ था जो स्वागत योग्य है। इससे कम से कम कुछ फर्जी राशनकार्ड तो कम हो ही जायेंगे।
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